Saturday, October 15, 2011

थाल पूजा का लेकर चले आइये

थाल पूजा का लेकर चले आइये , मन्दिरों की बनावट सा घर है मेरा।
आरती बन के गूँजो दिशाओं में तुम और पावन सा कर दो शहर ये मेरा।
दिल की धडकन के स्वर जब तुम्हारे हुये
बाँसुरी को चुराने से क्या फायदा,
बिन बुलाये ही हम पास बैठे यहाँ
फिर ये पायल बजाने से क्या फायदा,
डगमगाते डगों से न नापो डगर , देखिये बहुत नाज़ुक जिगर है मेरा।
झील सा मेरा मन एक हलचल भरी
नाव जीवन की इसमें बहा दीजिये,
घर के गमलों में जो नागफनियां लगीं
फेंकिये रात रानी लगा लीजिये,
जुगनुओ तुम दिखा दो मुझे रास्ता, रात काली है लम्बा सफर है मेरा।
जो भी कहना है कह दीजिये बे हिचक
उँगलियों से न यूँ उँगलियाँ मोडिये,
तुम हो कोमल सुकोमल तुम्हारा हृदय
पत्थरों को न यूँ कांच से तोडिये,
कल थे हम तुम जो अब हमसफर बन गये, आइये आइये घर इधर है मेरा।
- डा. विष्णु सक्सेना

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति।

Bharat Bhushan said...

विष्णु सक्सेना जी की इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिए आपका आभार विवेक जी.

मदन शर्मा said...

बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति

शकुन्‍तला शर्मा said...

सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

Pallavi saxena said...

अति सुंदर अभिव्यक्ति ...

रविकर said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
शुभ-कामनाएं ||

Maheshwari kaneri said...

बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति।

Unknown said...


Nice sir