Saturday, June 4, 2011

हम-तुम

जीवन कभी सूना न हो
कुछ मैं कहूँ, कुछ तुम कहो।

तुमने मुझे अपना लिया
यह तो बड़ा अच्छा किया
जिस सत्य से मैं दूर था
वह पास तुमने ला दिया

अब ज़िन्द्गी की धार में
कुछ मैं बहूँ, कुछ तुम बहो।

जिसका हृदय सुन्दर नहीं
मेरे लिए पत्थर वही।
मुझको नई गति चाहिए
जैसे मिले वैसे सही।

मेरी प्रगति की साँस में
कुछ मैं रहूँ कुछ तुम रहो।

मुझको बड़ा सा काम दो
चाहे न कुछ आराम दो
लेकिन जहाँ थककर गिरूँ
मुझको वहीं तुम थाम लो।

गिरते हुए इन्सान को
कुछ मैं गहूँ कुछ तुम गहो।

संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने अभी तक समझा नहीं
क्या हार है क्या जीत है

दुख-सुख मुझे जो भी मिले
कुछ मैं सहूं कुछ तुम सहो।

- रमानाथ अवस्थी

13 comments:

Shikha Kaushik said...

ramanath ji kavta bahut achchhi lagi .vishesh roop me ye panktiyan-
संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने अभी तक समझा नहीं
क्या हार है क्या जीत है
aabhar

ZEAL said...

.

दुख-सुख मुझे जो भी मिले
कुछ मैं सहूं कुछ तुम सहो।

How beautiful !

.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर रचना

virendra sharma said...

ज़िन्दगी एक नीड़सी है ,
हर तरफ एक भीड़ सी है ,
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर जाने हम कहां हों ,
जाने मन नाराज नहो !

Dr Varsha Singh said...

मुझको बड़ा सा काम दो
चाहे न कुछ आराम दो
लेकिन जहाँ थककर गिरूँ
मुझको वहीं तुम थाम लो।

कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने अभी तक समझा नहीं
क्या हार है क्या जीत है

दुख-सुख मुझे जो भी मिले
कुछ मैं सहूं कुछ तुम सहो।

वाह, बहुत सुन्दर भाव हैं !
विवेक जी, आपका बहुत आभार !

कानपुर ब्लोगर्स असोसिएसन said...

aap ke blog par aakar achchha laga apni kavita to sabhi likhte hai par dusro ki kavito ko apne blog par sthan dena aap ki mhanta hai.-- kanpur blog ki taraph se kiran

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

प्रेमरस से भरा ...लयबद्ध, प्रवाहपूर्ण , भावपूर्ण ....सुन्दर गुनगुनानेवाला गीत

प्रवीण पाण्डेय said...

अनुपम रचना।

Maheshwari kaneri said...

संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने अभी तक समझा नहीं
क्या हार है क्या जीत है
सुन्दर अभिव्यक्ति्
मेरे ब्लांग में आप आए धन्यवाद…

virendra sharma said...

रमानाथ अवस्थी को कितनी ही मर्तबा कविता पाठ करते सूना है .अच्छी रचना आपने परोसी है उनकी .शुक्रिया !कुछ तुम कहो -कुछ मैं कहूं .

virendra sharma said...

रमानाथ अवस्थी को कितनी ही मर्तबा कविता पाठ करते सुना है .अच्छी रचना आपने परोसी है उनकी .शुक्रिया !कुछ तुम कहो -कुछ मैं कहूं .

Anonymous said...

This is really beautiful